1857 Ki Kranti Rajasthan [Notes, PDF, MCQ] | 1857 की क्रांति राजस्थान

Rajasthan 1857 ki kranti:- दोस्तो आज हम आपको 1857 ki Kranti Rajasthan के बारें में बताएंगे जब 1857 की क्रांति हुई तो राजस्थान में क्या हुआ था सारी जानकारी विस्तार से बतायेंगे आप इस पोस्ट को अंत तक पढ़ना ताकि आपको समझ आ सके

1857 की क्रांति राजस्थान

अंग्रेजो की अधीनता स्वीकार करने वाली प्रथम रियासत : (करौली 1817)
सम्पूर्ण भारत में 569 देशी रियासते थी तथा राजस्थान 19 देशी रियासत थी
1857 की क्रान्ति के समय ए. जी. जी - सर जार्ज पैट्रिक लारेन्स थे। (राजस्थान, ए. जी. जी. का मुख्यालय- अजमेर में)
राजपुताना का पहला ए. जी. जी. - जनरल लाकेट
1857 की क्रान्ति का प्रमुख कारण:- चर्बी वाले कारतुस था।
1857 की क्रान्ति में रायफल ब्राउन बेस के स्थान पर चर्बी वाले कारतुस रायल एनफिल्ड नामक कारतुस का प्रयोग करते हैं।

1857 Ki Kranti Rajasthan

1857 की क्रान्ति का प्रतीक चिन्ह
 कमला का फुल व रोटी
31 मई 1857 विद्रोह की योजना बनाई (नाम - दिल्ली चली) नेतृत्व. बहादुरशाह जफर (अंतिम मुगल शासक)
10 मई 1857 को मेरठ के सैनिक में विद्रोह कर दिया जिसे यह समय से पहले शुरुआत होने पर इसकी असफलता का मुख्य कारण था।
राजस्थान में 1857 की क्रान्ति में छ: सैनिक छावनी थी

1. नसीराबाद अजमेर

2. ब्यावर अजमेर 

3.नीमच मध्यप्रदेश

4. देवली टोंक

5. खैरवाड़ा उदयपुर 

6. एरिनपुरा पाली

Note:-खैरवाड़ा व व्यावर सैनिक छावनीयों ने विद्रोह में भाग नहीं लिया।

राजस्थान में क्रान्ति का प्रारम्भ नसीराबाद 28 मई 1857 को सैनिक विद्रोह से होता हैं।

1. नसीराबाद :- 28 मई 1857 (अजमेर) नेतृत्व - 15 वीं बंगाल नेटिव इन्फेन्द्री न्यूबरों नामक एक अंग्रेज सैनिक अधिकारी की हत्या कर दी और दिल्ली की और चले ।

2. नीमच :- 3 जुन 1857 (मध्यप्रदेश) का नेतृत्व - हीरा सिंह ने किया था।

3. देवली:- 4 जुन 1857 (टोंक)

देवली और नीमच के सैनिक पहले तो टोंक पहुंचते है। और टोंक की सेना ने विद्रोह किया, इससे राजकीय सेना का सैनिक मीर आलम खां के नेतृत्व में टोंक के वजीर अली के खिलाफ विद्रोह किया और टोंक, देवली व नीमच तीनों की संयुक्त सेना दिल्ली चली गई।

4. एरिनपुरा:- 21 अगस्त 1857 (पाली)

जोधपुर लीजन टुकड़ी ने एरिनपुरा में विद्रोह किया, इसका नेतृत्व मोती खां, तिलकराम, शीतल प्रसाद व जोधपुर लीजन के सैनिकों ने किया व "चलो दिल्ली मारो फिरंगी" नारा दिया

आउवा (पाली) :- जोधपुर रियासत का एक प्रमुख ठिकाना था।

इसमें ठिकानेदार ठाकुर कुशाल सिंह ने भी विद्रोह किया | गुलर, आसोप, आलनियावास (आस-पास की जागीर) इनके जागीरदार ने भी इस विद्रोह में शामिल होते हैं।

बिथौड़ा का युद्ध पुद्ध:-

8 सितम्बर 1857 (पाली) क्रान्तिकारियों की सेना का सेनापति ठाकुर कुशाल सिंह और अंग्रेजी की तरफ से कैप्टन हीथकोट के मध्य हुआ और इसमें क्रांतिकारियों की विजय होती है।

चेलावास का युद्ध:-

(उपनाम -गौरी व कालो का युद्ध ) 18 सितम्बर 1857 (पाली

इसमें कुशाल सिंह एवं ए.जी.जी. जार्ज पैदिक लारेन्स के मध्य युद्ध होता है और कुशाल सिंह की विजय होती हैं।

जोधपुर के पोलिटिकल एजेंट मेंक मेसन का सिर काटकर आउवा के किले के मुख्य दरवाजे पर लटका दिया । 20 जनवरी को बिग्रेडपर होम्स के नेतृत्व में अंग्रेज सेना आउवा पर

1858 आक्रमण कर देती हैं। पृथ्वी सिंह (छोटा भाई) को किले की जिम्मेदारी सौंप कुशाल सिंह मेवाड़ चला गया। कर

कुशाल सिंह कोठरिया (सलूम्बर) मेवाड़ में शरण लेता है। इस समय मेवाड़ का ठाकुर जोधा सिंह था अंग्रेजो की विजय होती हैं। इस युद्ध में

कुशाल सिंह की कुल देवी सुगाली माता (10 सिर व 54 हाथ) थी।

ब्रिगेडियर होम्स सुगाली माता की मूर्ति को उठाकर अजमेर ले जाता है। वर्तमान में यह अजमेर संग्रहाल में सुरक्षित हैं।

अगस्त 1860 में कुशाल सिंह ने आत्मसमर्पण कर दिया। कुशाल सिंह के विद्रोह की जांच के लिए मेजर टेलर आयोग का गठन किया था साक्ष्यों का अभाव होने के कारण कुशाल सिंह को जेल से रिहा कर दिया जाता है

कोटा:- 15 अक्टूबर 1857

क्रांति के समय कोटा के महाराजा राम सिंह प्रथम थे। कोटा में विद्रोह कोटा की राजकीय सेना व आम जनता ने किया। नेतृत्व - लाला जयदयाल, मेहराब खां

1857 क्रांति में कोटा रियासत सबसे अधिक प्रभावित होती हैं,

इस समय कोटा का पालिटिक्स एजेन्ट मेजर बर्टन था। क्रांतिकारियों ने मेंजर बर्टन और उसके दो पुत्रों व एक अंग्रेज की हत्या कर दी।

मेजर जनरल रार्बट्स के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना कोटा पर आक्रमण करती हैं। अधिकांश क्रांतिकारी मारे गये और अंग्रेजो की विजय होती हैं।

लाला जयदयाल व मेहराब खां को कांसी दी गई।

जयपुर:- 1857 क्रांति के समय जयपुर के महाराजा सवाई रामसिंह 2 था विद्रोह की योजना बनाने वाले बजारत खाँ शादुल्ला खां ने जयपुर में षड़यंत्र रचा लेकिन समय से पहले ही पता चलने पर इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया

रामसिंह - को सितार-ए-हिन्द की उपाधि की ।

1857 की क्रांति का परिणाम 

भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी का शासन समाप्त कर दिया और भारत का शासन ब्रिटिश ताज या ब्रिटिश सरकार के अधीन चला जाता है

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